अहम…!!
देखती हूँ अक्सर
खुद को आईने में
कितना दिखती हूँ
अहम के दायरे से..
ख़ामोशी को लिए
खुद से उलझती
कितना समझती हूँ
अहम के आईने से..
अपनों के करीब
खुद को भूलती
कितना तय करती हूँ
अहम के फ़ासले से …
गैरो की नज़र में
खुद को सुनाती
कितना मुस्कुराती हूँ
अहम के साये से…
आईना झूठा नही
खुद ही सोचती
कितना जानती हूँ
अहम के पैमाने से..
रूह से मिलती
खुद ही कहती
कितना मानती हूँ
अहम को ज़माने से…
समझी नंदिता
खुद को ख़ाक
कितना ढूंढती हूँ
अहम के खजाने से……!!
#मेरी रुह@
#नंदिता@😊