मुक्तक/दोहा

समकालीन दोहे

दुनिया कैसी हो गई, कैसे हैं अब लोग!
पूजा से सब दूर हैं, चाहें केवल भोग!!

सेवक बनकर घूमते, पर करते हैं राज!
सेवा का कोई नहीं, करता है अब काज!!

सत्ता पाना हो गया, अब कितना आसान!
पर ऑफिस में, भृत्य का, पद मुश्किल, यह जान!!

जो सच्चे , वो रो रहे, झूठों पर मुस्कान!
नम्बर दो से ही बढ़े, अब इंसां की शान!!

फैशन करके हो गई, अब नारी अडवांस!
कुछ भी करने को खड़ी, मिल जाये बस चांस!!

वे ऊंचे पैकिज बिकें, जिनकी डिग्री उच्च!
उनको लगता देश यह, बिलकुल बिरथा, तुच्छ!!

आशाएं धूमिल हुईं, टूट रहे विश्वास!
दर्द, पीर में हैं घिरे, वर्ष, दिवस औ’ मास!!

रिश्ते बेमानी हुये, सिसक रहे अनुबंध!
स्वारथमय अब दिख रहे, सारे ही सम्बंध!!

डिग्री सबके पास है, पर हरगिज़ ना ज्ञान!
इनसानी जज़्बात से, हर कोई अनजान!!

जीवन जीवन ना रहा, ना ही यह वरदान!
जीवन की जो असलियत, कोई ना अनजान!!

प्रो. शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]