चाहते हैं आप ऊँचा पद अगर…
चाहते हैं आप ऊँचा पद अगर
सीख लीजे चापलूसी का हुनर
दूर कितनी चल सकोगे सोच लो
मुश्किलों से है भरी सच की ड़गर
मिल गया फिर से ठिकाना झूठ को
देखिये सच फिर रहा है दर-ब-दर
हो रही दीवार आँगन में खड़ी
देख रोया फूट आँगन का शजर
ग़र धरम अपना समझता आदमी
क्यूँ लहू बहता धरम के नाम पर
मौसमी बदलाव में किसको पता
कब हवा बहने लगे जाने किधर
काश उनकी गोद में हो सर मेरा
ख़त्म हो जब ज़िन्दगानी का सफ़र
सतीश बंसल
२८.०५.२०१९