गज़ल
बस इसी एक भूल ने मुझे बरबाद किया
मासूमियत से मैंने दुश्मनों पे एतमाद किया
इस दौलत से मालामाल रहोगे तुम अब
गम उम्र भर का दे के उसने ये इरशाद किया
मेरा होगा तो लौट आएगा इक रोज़ खुद ही
जा तुझे कैद-ए-मुहब्बत से अब आज़ाद किया
आज फिर तीर चलाएँ है तूने जी भर कर
आज फिर तेरी बातों ने दिल नाशाद किया
तुझसे बिछड़े हुए यूँ तो हो गए बरसों
आँख भर आई जब दिल ने तुझे याद किया
— भरत मल्होत्रा