“बहारों के चार पल”
मुश्किल हैं जिन्दगी में गुजारों के चार पल
मुमकिन नहीं हसीन नजारों के चार पल
बेमौसमी बरसात कहर बनके बरसती
पाते हैं खुशनसीब बयारों के चार पल
सबके नहीं नसीब में होतीं इनायतें
मिलते नहीं सभी को सहारों के चार पल
मुद्दत से दिल के भाव खड़े हैं कतार में
आते कभी-कभी हैं विचारों के चार पल
गुम हो गये जहान से किरदार आज तो
दिल ढूँढता है चैन-करारों के चार पल
करते दिखावा प्यार का आशिक हैं मनचले
सब खोजने चले हैं इशारों के चार पल
अब बागवाँ ही चमन को बरबाद कर रहे
तकते हैं फूल कबसे बहारों के चार पल
पतझड़ में पेड़-पौधों का बेनूर हुस्न है
करते हैं इन्तजार फुहारों के चार पल
बेरंग हो गयी है आज ‘रूप’ की घटा
गर्दिशजदा फलक के सितारों के चार पल
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)