गीतिका
कौन है चोर कैसे हम जाने,
कौन सिरमौर कैसे हम जाने।
झूठे अभिमान के पीछे उसके,
किसका है ज़ोर कैसे हम जाने।
ऐसे रिश्तें हैं आजकल जिनका,
ओर न छोर कैसे हम जाने।
फर्क दोनों में कहां लगता है,
नेता और ढोर कैसे हम जाने।
बात उसकी न काट पाओगे,
वक्त मुंह ज़ोर कैसे हम जाने।
क्या पता सांस की तेरी- मेरी,
कब खिंचे डोर कैसे हम जाने।
इस अंधेरी काली रात की ‘जय’,
होगी कब भोर कैसे हम जाने।
— जयकृष्ण चांडक ‘जय’