लघुकथा

रिश्ते

कुछ रिश्ते आदर, अपनापन, अनौपचारिकता और आकर्षण के रेशमी धागे इतनी कारीगरी से गुंथे होते हैं कि बिना नाम के ही इसकी खूबसूरती बनी रहती है ! ऐसे ही कुछ रिश्ते से बंधे थे जीनत और वह !

वैसे तो सब जीनत की समझदारी के कायल थे, पर वो उसे पगली ही बुलाता था और जब बहुत प्यार आता तो “मेरी पगली” !

उसके काँधे पर सर रख कर जीनत धीरे से बोली, “वक़्त की आँधियों से डर कर, कभी छोड़ तो ना दोगे ?”

“हर दम साथ दूँगा! मैं कभी किसी का साथ नहीं छोड़ता !” प्यार से उसे देखते हुए वह बोला !

“जानते हो मेरी जिम्मेदारियां… क्या इंतज़ार कर पाओगे?”, आशंकित सी जीनत बोली !

“दिल से चाहा है तुम्हें पगली, हमेंशा साथ ही पाओगी, ” उसके चेहरे पर नजरें जमाए वह बोला !

“बहुत गंदे हो तुम ! मुझे पगली क्यों कहते हो?” आँखें चुराती सी वह बोली !

“मेरी हो इसलिए”, उसकी आँखें बोल उठीं !

समेट लेना चाहते थे दोनों इन हसीं लम्हों को ! पर… जिम्मेदारियों का एहसास, फन उठाए फिर से खड़ा हो गया था ! कैसे अकेला छोड़ सकती है वो अपनी लाचार माँ को, अपनी छोटी बहनों को अपनी ख़ुशी के लिए !

नम आँखें और फीकी मुस्कान लिए, भारी कदमों से चल पड़ी जीनत ! कुछ रिश्ते फर्ज के भी होते हैं !

अंजु गुप्ता

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 24 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed