एकाकी पीपल
मेरे घर में भी था एक पीपल का पेड़! आस-पड़ोस, नाते-रिश्तेदार, सभी उसकी निर्मल छाया में ऐसे आकर बैठते थे, मानों उसका आशीर्वाद ले रहे हों ! पड़ोस के बच्चों को तो मानों उसके तले सारे जहाँ की खुशियाँ मिल जातीं थीं ! उनके लड़ने-झगड़ने, रूठने-मनाने, सभी का तो साक्षी था वो !
वर्षों बाद वहीं एक और पेड़ रोंपा गया ! ना जाने किस बात की खार थी नए पेड़ को, अपनी जगह बनाने को आतुर वो अंदर ही अंदर पुराने पीपल की जड़ें काटने लगा !
और… मुस्कुराते, बड़प्पन दिखाते, पुराना पीपल खुद में ही सिमटने लगा ! धीरे – धीरे वो हरे भरे पीपल खोखला हो मुरझा गया !
अब पत्ते विहीन खोखले पेड़ के आस-पास भला कौन आता? आजकल ना जाने क्यों हर घर में दिखते हैं एकाकी, मुरझाए से पीपल के पेड़ !
— अंजु गुप्ता