कविता

फिर सदाबहार काव्यालय- 27

बचपन याद आता है

अमवा की छाँव तले वो सहेलियों संग गप्पे लड़ाना,
फिर मौका पा कर नमक के साथ कच्ची कैरी चबाना.

दिन-दुपहरी भाग कर घर के पिछवाड़े सहेलियों संग जाना ,
और पीपल की छैयां में वो झूले पर लम्बी पींगें बढ़ाना.

बोल मेरी मछली कितना पानी कह घेरा तोड़ कर भाग जाना,
फिर गुज़रे जमाने की वो छुपन छिपाई व पकड़म पकड़ाई खेलना.

दादी-नानी के वो किस्से-कहानियाँ और पहेली बुझाना,
नटखट-नादां-भोली बन यूँ ही सबकी नाक में दम करना.

सच में वह बचपन याद आता है बहुत जब होती हूँ अकेली,
याद आती हैं वो बचपन के खेल-खिलौने और सखी-सहेली.

पर अब देखा करती रोज बच्चों को जूझते अकेलेपन से,
बन्द कमरों के घुटते दायरों में आया की गोद में पलते हुए.

सोचती हूँ हो कर उदास कहाँ से लायेंगे वो बिन्दास बचपन,
कैसे पायेंगे वो उन्मुक्त बिखरते रेत के घरौंदे बनाने का सुख.

कहीं हम इस अंधाधुंध बढ़ती आधुनिकता की स्पर्धा के दौर में,
बच्चों का आनन्ददायक स्वभाविक बचपन तो नहीं छीन ले रहे.

कभी-कभी सच में बहुत याद आता है वो अल्हड़-चंचल बचपन,
काग़ज़ की नाव व बारिश के रिमझिम पानी में भीगकर नहाना.

माँ की ज़ोरदार डाँट खाने के बाद बाबा-दादी की गोद में बैठ कर,
बुआ-चाचा के हाथों से गरम-गरम अदरक वाली गुड़ की चाय पीना.

कहाँ तक लिखूँ अन्त ही नहीं है इन यादों के अनमोल किस्सों का,
बन्द करूँ आँखों को तो सचमुच सपनों में वो बचपन याद आता है.

इरा जौहरी
लखनऊ
२०/६/२०१९

इरा जौहरी का संक्षिप्त परिचय

मैं स्वतन्त्र रचनाकार हूँ. मेरी माता का नाम श्रीमती कमल सक्सेना तथा पिता का नाम श्री भुवनेश्वर दयाल सक्सेना है. मैंने नृविज्ञान में परास्नातक व हिन्दी, संस्कृत व नृविज्ञान में स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की है, साथ ही बॉम्बे आर्ट में भी डिप्लोमा भी किया है. हमारे कई साझा संकलन गीत, गज़ल व लघुकथाओं के छप चुके हैं व कुछ नये छपने वाले हैं. हमारी वेबसाइट www.irajohri.com तथा ई मेल आइ. डी. [email protected] है.

धन्यवाद.
इरा जौहरी

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*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “फिर सदाबहार काव्यालय- 27

  • लीला तिवानी

    फिर सदाबहार काव्यालय में हम आपको एक नए बहुआयामी व्यक्तित्व से मिला रहे हैं, जिनका नाम है- इरा जौहरी. इरा जी सचमुच एक जौहरी हैं, जो हर रचना के मर्म को थोड़े-से शब्दों में व्यक्त करने की क्षमता रखती हैं. कथा-कहानी में उनको महारत हासिल है और कविताओं की वे मल्लिका हैं. इस कविता में उन्होंने अपने बचपन की यादों को ताजा कर हम सबको अपने बचपन की ताद ताजा करवा दी है. इराजी की हार्दिक स्वागत करते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है. इरा जी लघुकथा मंच ‘नया लेखन, नया दस्तखत’ पर हमारे साथ बहुत समय से सम्पर्क में हैं, उनकी कविता-कुशलता का पता हमें हाल ह्व्व में लगा, जब उन्होंने हमें अपनी साइट का पता दिया. आइए आनंद लें बचपन की सुहानी-मनभावन यादों का.

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