मुक्तक/दोहा

मुक्तक

(१)
प्यार की बातें करता हूं मैं ,प्यार ही मेरा पेशा है ।
पर उनकी क्या बात करूं मैं,जिनको सब कुछ पैसा है।
प्यार से ही तो प्रियवर देखो मुरली का इतिहास बना,
प्यार जहां है वहां ख़ुदा है, प्यार तो पूजा जैसा है ।।
(२)

अमीर खुसरो के स्वर मुझको,मीरा-भजन से लगते हैं
बिस्मिल्ला की शहनाई में वंशी के सुर बजते हैं
गया हूं जब-जब दोस्त मिरे मैं चिश्ती की दरगाह पर,
रामचरितमानस के तब-तब भाव मिरे मन सजते हैं।
(३)
मुंह में राम बगल छुरी, यही हाल है
अपने ही बने हैं दुश्मन अजीब काल है
तैयार है वो भौंकने मेरी पीठ में छुरा,
हाथों में जिसके मेरे लिए, प्यार का गुलाल है।
— प्रो. शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com