हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने में ऑलवेदर चारधाम सड़क का अहम् रोल
मानवोचित कृत्यों से इस धरती पर हर तरह का प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, ऋतु परिवर्तन हो रहा है, यूरोप जैसे ठंडे देशों में भयंकर लू और गर्म देशों में कड़ाके की ठंड की अवधि बढ़ती जा रही है। कहीं अतिवृष्टि और कहीं भयंकर सूखा आदि करके प्रकृति अपनी बारबार रोष प्रकट कर रही है। कार्बनडाईऑक्साइड की वैश्विक स्तर पर अत्यधिक उत्सर्जन से सम्पूर्ण पृथ्वी पर ‘ग्लोबल वार्मिंग { वैश्विक तापमान वृद्धि) की बहुत ही दुःखद और चिन्तित करने वाली घटना होने की दर बहुत तीव्र होती जा रही है, जिसके फलस्वरूप उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवीय बर्फ के ग्लेशियरों तथा ग्लेशियरों का तीसरा सबसे बड़ा विश्व का भंडार हिमालयन ग्लेशियरों का पिघलने की दर बहुत तेजी हो रहा है।
इस दुःखद घटना में आग में घी डालने का काम पिछले सालों पूरे हिमालयी परिक्षेत्र के सैकड़ों साल पुराने मोटे-मोटे-हरे-भरे पेड़ों को काटकर भारत की कूपमंडूक और धार्मिक अंधविश्वासों में जकड़ी जनता के वोट के लालच में हर मौसम में खुली रहने वाली चार धाम सड़कचौड़ीकरण योजना हुई है, जिसकी कुल लम्बाई लगभग 900 किलोमीटर है। इस सड़कचौड़ीकरण का दुष्परिणाम यह हुआ है कि भारतीय शहरों के नवधनाढ्यों के समूह के समूह हिमालय पर अपनी बड़ी-बड़ी गाड़ियों से इतनी संख्या में जाना शुरू कर दिया है कि हिमालय के कुछ प्रसिद्ध ग्रीष्मकालीन ठंडे नगर यथा शिमला, मसूरी, नैनीताल, अल्मोड़ा आदि में जाम की स्थिति बनती जा रही है। इससे भी दुःखद स्थिति मांऊट एवरेस्ट जैसे उच्च शिखर पर इस साल इतनी भीड़ पहुंची कि वहां जाम की स्थिति पैदा हो गई जिससे शिखर पर पहुँचने में विलम्ब होने से कई पर्वतारोहियों की ऑक्सीजन सिलिंडर खतम होने से वहीं कईयों की दुखद मृत्यु भी हो गई।
उक्त सभी घटनाओं में सबसे दुखद पहलू यह है कि विश्व की तीसरे सबसे बड़े ग्लेशियरों के हिमालयी खजाने पर पेट्रोल और डीजल के जलने से उत्पन्न अत्यधिक कार्बनडाईऑक्साइड से इन लाखों सालों से जमें और संचित ग्लेशियर जो हिमालय से निकलने वाली सभी नदियों के आदिश्रोत हैं, तेजी से पिघल रहे हैं। हिमालय के विलुप्ति के कगार पर खड़े वन्य जीवों के लिए भी यह चारधाम सड़कचौड़ीकरण योजना अभिषाप सिद्ध होने के अतिरिक्त, ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना पर्यावरणीय दृष्टिकोण से इस पृथ्वी और विशेषकर भारत की जीवनदायिनी नदियों के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा करने वाले सिद्ध होगें, जिसकी भरपाई मनुष्य प्रजाति अपने तमाम वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद भी किसी सूरत में नहीं कर सकता !
— निर्मल कुमार शर्मा