बारिश लगे सुहानी
पहली बारिश आ गई, लोग मचाते शोर।
धरती तपती अब नहीं, लगे सुहानी भोर।।
घुमड़ घुमड़ कर आ गए, फिर से बादल रोज।
देखो कैसा नाचता , बागों का ये मोर।।
पहली बारिश ने दिया, सबको ये संदेश।
जागो खेती तुम करो, बदलो अब परिवेश।।
शीतल शीतल पवन चले, और चले बौछार।
बारिश के दिन दे रहे, सबको कितना प्यार।।
चमक रही है दामिनी, करती अंतर चोट।
बैरण बरखा आ गई, कैसी तुझमें खोट।।
काले मेघा कह रहे,देखो मन की बात।
सूखी धरती कह रही, रो रो सारी बात।।
— कवि राजेश पुरोहित