गीतिका/ग़ज़ल

शूल छालों और अनगिन ठोकरों के बाद भी..

शूल छाले और अनगिन ठोकरों के बाद भी
मंजिलों पर हैं निगाहें मुश्किलों के बाद भी

है करम मुझ पर ख़ुदा का ख़ास, शायद इसलिए
जी रहा हूँ दुश्मनों की साजिशों के बाद भी

बुझ गये हल्की हवा में दीप सारे झूठ के
दीप सच का जल रहा है आँधियों के बाद भी

चाहतों के दुश्मनों को क्यूँ नही आता समझ
आशिकी ज़िन्दा रहेगी आशिकों के बाद भी

आप ही कहिये उन्हें अपना कहें या ग़ैर हम
जो नही पिघले हमारे आँसुओं के बाद भी

पतझरों में सब मुसाफ़िर लौट जाएंगे मगर
बागबां ठहरा रहेगा पतझरों के बाद भी

वे शजर जिनपर उगे थे ख़ार लहलाते रहे
जो फले पत्थर मिले उनको फलों के बाद भी

बस्तियों में घूमते हैं जो चुनावी दौर में
जीतकर मिलते नही हैं मिन्नतों के बाद भी

सतीश बंसल
०९.०५.२०१९

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.