नया समाज
रात को आफिस से लौटकर वापस स्वदेश आ गया,
समाचार चैनल खोलकर बैठ गया।
चैनल पर समाचार कम साबुन, बिस्कुट और बनियान का प्रचार पर प्रचार आ रहा था।
परिवार के सभी सदस्य अपने-अपने मोबाइल में व्यस्त चल रहे थे
उठकर पानी पीकर सोने चला गया।
यही अब आम जिदंगी बन गई है, भौतिक सुख के नाम पर अपनो से दूरी आये दिन बढ़ती जा रही है।
संयुक्त परिवार अब हिदीं स्कूल के किताबो में अच्छा लगता है।
सबकुछ बदल गया ना
पहले बच्चे नानी के घर जाते छुट्टी बिताने मगर अब दादी के यहां जाते है।
समय-समय की बात क्या खुब है कि पहले पोस्टमैन के साइकिल के धंटी पर लोग दौड़ लगाते।
अपनो की चिठ्ठी पढकर आंख से खुशी और गम का आंसू बहाते दिल से आर्शीवाद देते मगर आज सब कुछ बदल गया,
मोबाइल फोन रहते हुये ना कोई सदेंश ना खबर
अब उन बुजुर्ग आंखो में पानी नही बचा जो अपनी प्यास बुझा सके।
क्यो कि अब वो चिठ्ठी नही आयेगा, क्यो कि चिठ्ठी लिखने के लिये दिल धड़कना चाहियें।
मगर दिल स्वार्थी हो चुका है,
हम तकनीक को कोस कर अपने दिल को झूठ की सुकुन देते है।
सुपरफास्ट युग चल रहा है
अब कोई भी काम भारी नही है,
दिन भर का काम कुछ समय में हो जाता
मगर फिर भी समय नही है।
पहले ग्रामीण इलाको में गांव में लोग समय निकाल कर एक-दूसरे से सुख-दुख बांटते थे,
मशीन का युग नही हुआ करता साधन का अभाव में समय आसानी से मिल जाते।
भारतीय समाजिक ढांचा धवस्त होने के कगार पर पहुंच गया है, आज पैसे के पीछे भागने मे इतना अंधा हो गये रिश्ते, भावना सब ताक पर रख दिये है।
परिवार बिखर रहे है
आने वाले समय में आप सभी को वृध्दा आश्रम की बधाई हो।
— अभिषेक राज शर्मा