गीत/नवगीत

सरसी छन्द गीत – धर्म, मजहब

दया धर्म का आश्रय लेकर ,काले करते काम ।
छुरा पीठ में घोंप भजें वो ,मुख से सीता राम ।
अमन चैन की तज कर माला ,करें धर्म का मोल ।
शीश गठरिया पाप की चलें ,राधे राधे बोल ।
मात-पिता को भुला करें वो ,जग में ऊँचा नाम ।
छुरा पीठ में घोंप भजें वो ,मुख से सीता राम ।
आज धर्म के मर्म को कहो ,समझ रहा है कौन ।
काँव काँव का शोर चहुँ दिशि ,कोयल बैठी मौन ।
जोगी अपना जोग छोड़कर ,हाथ लिए हैं जाम ।
छुरा पीठ में घोंप भजें वो ,मुख से सीता राम ।
धर्म यहाँ व्यवसाय बना है ,अरु विद्या बन्दूक ।
आड़ करें नेता मजहब की ,धान्य भरे सन्दूक ।
पहने चोला साधु-संत का ,करके कत्ले आम ।
 छुरा पीठ में घोंप भजें वो ,मुख से सीता राम ।
अबलाओं की अस्मत छीनी ,घुंघरू बाँधे पाँव।
किया कलंकित  परुष जाति को ,नारी को बदनाम ।
जब रावण की राह चलेंगे ,क्या होंगे सदकाम ।
छुरा पीठ में घोंप भजें वो ,मुख से सीता राम ।
— रीना गोयल ( हरियाणा)

रीना गोयल

माता पिता -- श्रीओम प्रकाश बंसल ,श्रीमति सरोज बंसल पति -- श्री प्रदीप गोयल .... सफल व्यवसायी जन्म स्थान - सहारनपुर .....यू.पी. शिक्षा- बी .ऐ. आई .टी .आई. कटिंग &टेलरिंग निवास स्थान यमुनानगर (हरियाणा) रुचि-- विविध पुस्तकें पढने में रुचि,संगीत सुनना,गुनगुनाना, गज़ल पढना एंव लिखना पति व परिवार से सन्तुष्ट सरल ह्रदय ...आत्म निर्भर