मुक्तक
कोई माँ बच्चे को, यूँ दूध नही पिलाती,
नजर न लगे, अपने आँचल में छुपाती|
होती निगाहें, बच्चे की भाव भंगिमा पर,
माँ अपने जिस्म की नुमाइश नही लगाती|
नही भाव ममता का, है इसकी आंख में,
कामुकता का अहसास, नजरो से कराती|
लरजते होंठ, वस्त्र काँधे से उतार कर, माँ,
निजता के अपने फोटो, यूँ तो नही खिंचाती|
— अ कीर्ति वर्धन