कविता
देश-प्रेम फर्ज़ निभाना पड़ेगा
दुश्मन को मार भगाना पड़ेगा.
अब तुमको चुपचाप सोना नहीं
मीठी बातों में आके खोना नहीं.
सबक बैरी को तो सिखाना पडेगा.
ये हिमालय की जमीं अजंता सज़ी
त्रिवेणी हमारी आन चितोड़ शान हैं
गुलमर्ग महक माँ गंगा गाना पड़ेगा.
उठो वतन-वासियों जागों हित देश
पहनो सुरक्षा में कवच बदलो भेष
अव किया वादा जो निभाना पड़ेगा.
-–रेखा मोहन १८/७/१९