गीतिका/ग़ज़ल

तू वक्त को थाम नही सकता———

चाहे जितना दौड़ यहां ले !
तू मौत से भाग नही सकता।
थक जायेगा जिस क्षण में !
तू सांसे मांग नही सकता।।
चाहे जितना दौड़…………….

ये मेरा है वो तेरा है !
ये अपने वो पराये हैं !
सब आयेंगे दर पे तेंरे –
तू कुछ जान नही कसता।।
चाहे जितना दौड़…………….

रोते रोते आये यहां पे !
सूर वीर क्यों बनते हो !
प्यासे चाहे जितना हो –
तू पानी मांग नही सकता।।
चाहे जितना दौड़…………….

जीवन भर जो रखते रहे !
उसे लेकर जा नही सकते !
दौलत सब ये लुट जायेंगी –
लेकिन तू जाग नही सकता।।
चाहे जितना दौड़…………….

जीवन के इन चार दिनों में !
कंधे चार बना डालो !
अंत सफर जब आयेगा तो !
दो गज नांघ नही सकता।
चाहे जितना दौड़…………….

माना वक्त ये तेरा है !
न मारों वक्त के मारे को !
ये समय बदलता रहता है –
तू वक्त को थाम नही सकता।
चाहे जितना दौड़…………….

मेहनत से या बेईमानी से !
((राज) कई यहां तेरे बने !
मिट्टी में सब मिल जायेगा –
गगन तू लांघ नही सकता।
चाहे जितना दौड़…………….

राजकुमार तिवारी (राज)

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782