लघुकथा -बहकते कदम
“देख नीति, तू ऐसा वैसा कुछ करने की सोचना भी मत| मनीष अच्छा लड़का नहीं है, माना कालिज में तुम्हारा अच्छा मित्र है | उसके साथ अधिक निकटता या विवाह का सोचना ठीक नहीं ,”उसके घरवाले तुझे कभी स्वीकार नहीं करेंगे| तु संभल जा,” माँ ने बहुत नीति को समझाते हुए मनीष से दूरी बनाने को समझाया था| नीति सोचती “उसकी चमड़ी रोग के कारण[फुलबरी] सब उसको अजीब तरीके से देखते हैं, कोई बात नहीं करता उसे सचमुच कौन पसंद करेगा||”
नीति एक दिन कॉलेज से कपडों और नकदी साथ लिये परिवारवालों को धोखा दे मनीष संग भाग गई| बिना सोचे देखे दोनों लंबे रूट की बस चढ़ गए| बस में दोनों की हरकतों पर एक दम्पति की नज़र थी| नीति पूरे जोश और मौज में थी पर मनीष पूरी संजीदगी से अनेकों से बात कर रहा था| नीति कुछ दूर क्या हुई, मनीष ने उसका मोबाईल, पर्स में पैसे और बैग भी चैक कर लिये| उसने नीति से आँख बचा उसके बैग से पैसे निकाल लिये| दम्पति को विशवास हो गया था कि दोनों घर से भागे हुए हैं| दम्पति ने आपस में बातचीत कर नीति और मनीष को सुनाते हुए कहा, “घर से भागने वाले बच्चों को घर जरूर खबर कर देनी चाहिए, नहीं तो पुलिस घरवालों को मारती और परेशान करती है और जेल में भी ड़ाल देती है| ये सब सुन नीति ने सोचा कि उसे अपने घर सूचित कर देना चाहिए| उसने अपने घर फोन मिलाया और बोली “मै और मनीष हेमकुंड साहिब जा रहे हैं, आप चिंता न करना| हम अम्बाला से गाडी लेंगे|” दम्पति ने अब स्पष्ट रूप से नीति को होंसला दिया और अपने साथ रखा| दम्पति ने नीति से मोबाईल के बहाने नंबर से उसके घर फोन मिलाया और कहा, ”देखिये हम उनके साथ होंगे अगर आप अभी अम्बाला समय पर पहुँच जाओ तो बेटी को अपने साथ पायोगे |” समय पर पहुँच नीति के माँ-पिता ने बेटी को उस बदनामी की दलदल में गिरने और जिंदगी दूभर होने से सम्भाल लिया.
— रेखा मोहन