लघुकथा

विश्वास के पंख

ऑस्ट्रेलिया से कवि सम्मेलन में धूम मचाकर मिन्नी अपनी मां सविता के साथ पेरिस कवि सम्मेलन में भाग लेने के लिए फ्लाइट में बैठी कविता लिखने में व्यस्त थी. सविता उसे व्यस्त देखकर बहुत खुश भी थी और भावविभोर होकर अतीत की यादों में खोई हुई भी.

मिन्नी को कविता लिखने का शौक भी था और उसमें जन्मजात यह प्रतिभा भी थी, यह सविता को तब पता चला, जब मिन्नी को स्कूल में क्षेत्रीय प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार से नवाज़ा गया. उस दिन सविता के आंसू थमने को ही नहीं आ रहे थे. आंसू आने का कारण थी, दुर्घटना के कारण मिन्नी की चल पाने में असमर्थता. स्कूल भी वह व्हील चेयर पर जाती थी, जिसमें मिन्नी की सहेली गिन्नी उसकी सहायता करती थी. कल को बेटी को कवि सम्मेलनों में जाना पड़ा, तो कैसे आया-जाया करेगी? तब मिन्नी ने ही मां को हौसला दिलाते हुए कहा था-”मेरी अच्छी मां, तुम चिंता मत करो, देखना जो कवि सम्मेलन के लिए बुलाएगा, वही लाने-ले जाने का भी प्रबंध करेगा.”

”बेटी, रेत के महल मत बना, जो हल्की-सी फूंक से भरभराकर गिर जाएं.”

”मां, ये रेत के कच्चे महल नहीं हैं, विश्वास के खंभों पर टिके हुए पक्के महल हैं, यों ही नहीं टूटने वाले.”

आज सचमुच उसके विश्वास को पंख लग गए थे. देश-विदेश से उसको कवि सम्मेलनों के निमंत्रण आते थे. शुरु से आखिर तक प्रबंध की जिम्मेदारी आयोजक निभाते थे. सहायिका के रूप में सविता भी उसके साथ अनेक देशों में भ्रमण कर सकी थी. विशेष एलिवेटेड गाड़ी उनको घर से ले जाती थी और घर तक छोड़ जाती थी. कविता पूरी करके मिन्नी ने मां के विचारों की तंद्रा भंग करते हुए पूछा- ”मां, कहां खो गई हो?”

”कुछ नहीं, बस विश्वास के पंखों पर सैर कर रही थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “विश्वास के पंख

  • लीला तिवानी

    विश्वास के पंख हों और विश्वास के खंभों पर टिके हुए पक्के महल हों, तो यों ही टूटने वाले नहीं होते हैं. मिन्नी ने यह सिद्ध कर दिखाया. मां ने भी चिंता छोड़कर विश्वास के पंखों के सहारे थाम लिए थे.

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