कविता

मेरी चाहत

चाँद तारो में ढ़ूँढ़ता हूँ तुम को
पर हर बार मेरे दिल में ही मिलते हो

क्या करुँगा नज़ारों को देख कर
जब तुम को देख कर ही सकुन मिलता हो

माना में नहीं हूँ तेरे काबिल
पर प्यार तो “तुम” से ही करता हूँ

जिंदगी का क्या है भरोसा एक दिन चली जाएगी
पर देख लेना “तुम”, में और मेरी तन्हाई हर बार तुम को याद आएगी

रूठना मनाना या तुम को चिढाना
ये तो पास आने के बहाने है

एक बार पास बिठाके तो देखो
सुनाने मुझे दिल के कितने फ़साने है

हर दिन हर पल तुम्हारे याद में गुजार देता हूँ
“तुम” मिलोगे मुझे इस चाहत में सारी दुरी भी मिटा देता हूँ

रवि प्रभात

पुणे में एक आईटी कम्पनी में तकनीकी प्रमुख. Visit my site