कविता

वो यमुना किनारा

बहुत याद आता है मुझको वो यमुना किनारा।

वो नीला सा पानी,वो बहती सी धारा।
वो पावन सी भूमि,वो मथुरा हमारा।।

सुबह सवेरे वो मन्दिर को जाना, वो यमुना किनारे घँटों बिताना।।
वो बचपन की मस्ती,वो बहता सा पानी।।

बहुत याद आता है मुझ को यमुना किनारा।

वो बहनों के संग में यमुना पर जाना,ठाकुर जी के लिए पानी भर लाना।।
वो अपना जमाना,घाटों पर था जब अपना ठिकाना।।

बहुत याद आता है वो यमुना किनारा।।

वो कल कल सी धारा,वो निर्मल सा पानी।
वो कच्छप का दौड़ना,वो मछली सुनहरी।।

बहुत याद आता है वो गुजरा जमाना,
वो यमुना किनारा ,जहाँ घर था हमारा।।

घाटों पर चौबो की चौपाल लगाना,जारी अभी भी है।
पर बदल गया है वो सारा नजारा।।

बहुत याद आता है वो यमुना किनारा।।

देखी नही जाती अब करुण दशा यमुना की।

वो कीड़ो का पानी,वो बास पुरानी।।
वो नालों का गिरना,वो झागों का उठना।।
वो नमामि यमुने का नारा,वो वोट बैंकिंग सहारा।।

वो गटरों का पानी ,वो सड़को के नाले।
जो गिराए जा रहे है नदियों में सारे।।

कहा गए वो कृष्ण हमारे,कहा है यमुना पुत्र हमारे।
किया था जिन्होंने कलिया के विष से मुक्त यमुना को।।

कहा खो गया वो नदिया का पानी
क्या खो गयी अब ये बातें पुरानी।।

बहुत याद आता है वो यमुना का पानी।।

✍संध्या चतुर्वेदी
अहमदाबाद, गुजरात

संध्या चतुर्वेदी

काव्य संध्या मथुरा (उ.प्र.) ईमेल [email protected]