कविता

उलझन

उलझनों के बादल जो तुम्हारे ऊपर छाए हैं
किसी की देन नहीं तुम्हारे खुद के बनाए हैं
जितना उलझोगे,खुद उलझ कर रह जाओगे
खुद को बेवजह,परेशानियों से घिरा पाओगे
हंसकर करोगे सामना तो रास्ता सरल पाओगे
जिंदगी की इस राह पर निरंतर बढ़ते जाओगे
उलझनों को पैदा भी हम अपनी सोच से करते हैं
बेवजह की बातों में अपनी ऊर्जा व्यर्थ करते हैं
सकारात्मक सोच से ही तुम हर मंजिल पाओगे
सपने हमेशा जिंदा रखना तभी आगे बढ़ पाओगे
चिंता किसी का हल नहीं,धर्य से सब तुम कर पाओगे
रखना खुद पर विश्वास,हर मंजिल हासिल कर जाओगे
आशीष शर्मा “अमृत”

आशीष शर्मा 'अमृत'

जयपुर, राजस्थान