जननी को लजाते हो!!
जिस योनि से
दुनिया में आते हो
जिन स्तन से
भूख मिटाते हो
देख इनको
ललचाते हो
कामाग्नि में
अंधे होकर
बेटी/बहन
भूल जाते हो
पौरुष का रौव
दिखाते हो
आंँखों से ही
ना जाने
कितनी बार
भोग जाते हो
हवस में
नर/पिशाच बन
बलात्कार हत्या
कर जाते हो
मर्यादा को
तार-तार कर
जननी को लजाते हो
पुरुष कहलाते हो
— डॉ रचना सिंह “रश्मि”