चतुष्पदी
मापनी- 2122 2122 1222 12, समांत- अल, पदांत- से डरा
अश्क आँखों को मिला प्रेम काजल से डरा।
सत्य सावन की घटा स्नेह बादल से डरा।
गुम हुई है चाँदनी अब नए दीदार में-
भीगता सावन रहा हुश्न घायल से डरा।।
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
मापनी- 2122 2122 1222 12, समांत- अल, पदांत- से डरा
अश्क आँखों को मिला प्रेम काजल से डरा।
सत्य सावन की घटा स्नेह बादल से डरा।
गुम हुई है चाँदनी अब नए दीदार में-
भीगता सावन रहा हुश्न घायल से डरा।।
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी