कविता

आज समझ आया

आज समझ आया
क्या होता है अपना और पराया
जिसे अपना समझ
जीती थी अंधविश्वास मे
एक पल में टूट गया ये भ्रम
समझा गया जीवन का एक सच
यहां लग जाती है बोली
हर एक रिश्तों की
कोई मोल भाव नहीं
बस एक दाम
ओ है बस मतलब।

निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४