लघुकथा -अंतर्मन
मंत्रीजी विकास के घर मुशायरा था| सभी नामवर कवियों और शायरों के बारे में मंत्रीजी को बताया गया, क्योंकि मंत्रीजी कविता और शायरी के कायल थे| मंत्रीजी ने आयोजक से पूछा, “कोई बड़ा कवि छुट तो नहीं गया, देख लो|” “मंत्री महोदय एक कवियत्री लोगों में बहुत मकबूल है पर वो हकीकत ही बोलती और उसे सम्मान की भी इतनी तमन्ना नहीं है| हमने उसका नाम नहीं लिखा कि कल कोई बखेड़ा खड़ा ना हो जाये|” मंत्री, “क्यों नहीं लिखा| अगर उसे लोग पसंद करते हैं तो कोई तो खास बात होगी, उसको सुनने का तो सबको बेसब्री से इन्तजार होगा|” मुशायरा शुरू हुआ, सबने अपना अपना कलाम पढा| सब आलिम कवियों ने मंत्रीजी के यशोगान में महफिल में खूब जोश बनाया रखा| सभी आयोजक बोलते दिखे, “फलाने का बहुत ही सुंदर मन बहलाने वाला कलाम था|” दूसरा, “आपको तो मंत्रीजी जरूर खुश हो बड़ा उपहार देंगे|” तभी मंत्रीजी ने आयोजक से उस कवियत्री के बारे में पूछा, “उस खास कवियत्री का कलाम हो गया क्या?” आयोजक, “नहीं सर उसका नाम सबसे बाद में रखा है ताकि प्रोग्राम बखूबी चलता रहे, अभी उनका ही गायन शुरू होगा|” मोहतरमा का मंच पर कदम पड़ा तो सन्नाटा छा गया| उसके गायन के सुरों में वेग, विरोध, प्रतिरोध, और गतिरोध सब सामने बिखरने लगे| सभी बोल रहे थे, “क्या खूब होंसले और हिम्मत से निडर हो सब खामियाँ और कमजोरियाँ सामने परोस दीं|” आयोजक डर के बोल रहा,, “अब खामियाजा भी भुगतना पडेगा| प्रशासन की सारी पोल खोल दी नासमझ!”
अंत में मंत्रीजी ने सबको प्रमाण-पत्र दे सम्मानित किया| समाज की सच्चाई और प्रशासन में कमियाँ को जानकर मंत्री बोले,” यूँ तो साहित्य समाज का दर्पण है, पर लगता किसी की सोच साहित्य का अंतर्मन है|”
— रेखा मोहन