लघुकथा – करनी का फल (प्रतिशोध)
चीटियों का सरदार मधुमक्खियों से बैर पाल लिया। वज़ह कुछ खास नहीं ,अपने बिल को थोड़ा बड़ा बनाने के चक्कर में आम की डालियों के खोह से निकल कर ऊपर चढ़ने लगी ।
मधुमक्खियों को यह बात हज़म नहीं हुई ,रानी मधुमक्खी चेतावनी देते हुए बोली ; “ओ चींटे तुम वह कहावत शायद भूल गये , ‘चीटियों की जब मौत करीब आती है तो उसके पंख निकल आते हैं’ । क्यों हम से दुश्मनी मोल ले रहे हो ?तुम्हें पता है हम सभी अगर अपनी एकता की ताकत दिखायें तो तुम्हारे घर क्या तुम्हारे नामोनिशान मिटा सकती हूँ।”
यह सुन कर किशोरवय चींटे को बहुत बुरा लगा ।उसने जंगली भौंरों से साँठ-गाँठ कर ली । आपराधिक हथकंडे अपना कर तथाकथित दुश्मनों को डराने लगा।
रानी मधुमक्खी को यह बात नागवार लगी , उसने बुजुर्ग चींटे की माँ से मिल कर अपनी समस्या बताई।
“बहन आपके बच्चे आये दिन गुंडे-मवाली की तरह हमें डराते हैं । आप बताओ हम क्या करें ?”
“मैं क्या कह सकती हूँ पिछले कई सालों से मैं उपेक्षित अपने ही घर में नज़रबंद हूँ ,भला मैं आपकी मदद कैसे कर सकती हूँ ?
“आप भूल रही हैं कि प्रथम गुरू माँ होती है ,अगर आप सही वक्त पर अपने बच्चों में संचेतना जगाई होती तो यूँ असमय आपके बच्चों के पंख नहीं निकलते ; अब हमें जो करना है वह हम करेंगे ,आप दोष मत देना ।”
इतना कह कर मधुमक्खियाँ प्रजापालक से मिलने गई , अपनी समस्याओं से अवगत कराई । पालक ने समस्याओं को गंभीरता से सुना ,ओह इस छोटे से चींटें की इतनी औकात ! मेरे ही बाग में आम का एवं मधु का दुश्मन सीना ताने घुम रहा है! पूरी तैयारी के साथ प्रजापालक अपने बाग में जाकर जहरीली दवाओं का छिड़काव आम की जड़ में करवा दिया।
पल भर में त्राहिमाम त्राहिमाम करते हुए चींटे धाराशायी हो गए , बिल के अंदर से माँ अपनी परवरिश को कोसते हुए विलाप करने लगी , ‘जैसी करनी वैसी भरनी काश बड़ों की सीख को समझ पाते तो यूँ असमय काल कलवित नहीं होते।
— आरती राय