अमृता प्रीतम
पंजाबी भाषा की हर दिल अज़ीज़ साहित्यकार, पद्मविभूषण, ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त लेखिका व पूर्व राज्यसभा सांसद (1986–1992) अमृत प्रीतम का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत के गुजराँवाला जिले में 31अगस्त ,1919 में हुआ था। बचपन बीता लाहौर में, शिक्षा भी वहीं हुई। अमृता प्रीतम को पंजाबी भाषा की पहली कवयित्री माना जाता है। किशोरास्था में ही उन्होंने लेखन कार्य शुरू कर दिया था। लगभग १०० पुस्तकें लिखी हैं जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ भी शामिल है। अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में शामिल हैं। जिनकी रचनाओं का अनुवाद विश्व की अनेक में भाषाओं हुआ।1957 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1958 में पंजाब सरकार के भाषा विभाग का पुरस्कार , 1988 में बल्गारिया वैरोव पुरस्कार;(अन्तर्राष्ट्रीय) और 1982 में भारत के सर्वोच्च साहित्त्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित। उन्हें अपनी पंजाबी कविता अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ के लिए बहुत प्रसिद्धी प्राप्त हुई। इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुई भयानक घटनाओं का अत्यंत दुखद वर्णन है और यह भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में सराही गयी।
चर्चित कृतियाँ
उपन्यास- पांच बरस लंबी सड़क,
पिंजर,
अदालत,
कोरे कागज़,
उन्चास दिन,
सागर और सीपियां
आत्मकथा-रसीदी टिकट
कहानी संग्रह-
कहानियाँ जो कहानियाँ नहीं हैं,
कहानियों के आँगन में
संस्मरण-
कच्चा आंगन,
एक थी सारा
उपन्यास
डॉक्टर देव (१९४९)- (हिन्दी, गुजराती, मलयालम और अंग्रेज़ी में अनूदित),
पिंजर (1950) – (हिन्दी, उर्दू, गुजराती, मलयालम, मराठी, अंग्रेज़ी और सर्बोकरोट में अनूदित),
आह्लणा (1952) (हिन्दी, उर्दू और अंग्रेज़ी में अनूदित),
आशू (1958) – हिन्दी और उर्दू में अनूदित,
इक सिनोही (1959) हिन्दी और उर्दू में अनूदित,
बुलावा (1960) हिन्दी और उर्दू में अनूदित,
बंद दरवाज़ा (1961) हिन्दी, कन्नड़, सिंधी, मराठी और उर्दू में अनूदित,
रंग दा पत्ता (1963) हिन्दी और उर्दू में अनूदित,
इक सी अनीता (1964) हिन्दी, अंग्रेज़ी और उर्दू में अनूदित,
चक्क नम्बर छत्ती (1964) हिन्दी, अंग्रेजी, सिंधी और उर्दू में अनूदित,
धरती सागर ते सीपियाँ (1965) हिन्दी और उर्दू में अनूदित,
दिल्ली दियाँ गलियाँ (1968) हिन्दी में अनूदित,
एकते एरियल (1969) हिन्दी और अंग्रेज़ी में अनूदित,
जलावतन (1970)- हिन्दी और अंग्रेज़ी में अनूदित,
यात्री (1971) हिन्दी, कन्नड़, अंग्रेज़ी बांग्ला और सर्बोकरोट में अनूदित,
जेबकतरे (1971), हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी, मलयालम और कन्नड़ में अनूदित,
अग दा बूटा (1972) हिन्दी, कन्नड़ और अंग्रेज़ी में अनूदित
पक्की हवेली (1972) हिन्दी में अनूदित,
अग दी लकीर (1974) हिन्दी में अनूदित,
कच्ची सड़क (1975) हिन्दी में अनूदित,
कोई नहीं जानदाँ (1975) हिन्दी और अंग्रेज़ी में अनूदित,
उनहाँ दी कहानी (1976) हिन्दी और अंग्रेज़ी में अनूदित,
इह सच है (1977) हिन्दी, बुल्गारियन और अंग्रेज़ी में अनूदित,
दूसरी मंज़िल (1977) हिन्दी और अंग्रेज़ी में अनूदित,
तेहरवाँ सूरज (1978) हिन्दी, उर्दू और अंग्रेज़ी में अनूदित,
उनींजा दिन (1979) हिन्दी और अंग्रेज़ी में अनूदित,
कोरे कागज़ (1982) हिन्दी में अनूदित,
हरदत्त दा ज़िंदगीनामा (1982) हिन्दी और अंग्रेज़ी में अनूदित
आत्मकथा:
रसीदी टिकट (1986)
कहानी संग्रह:
हीरे दी कनी,
लातियाँ दी छोकरी,
पंज वरा लंबी सड़क
इक शहर दी मौत,
तीसरी औरत
कविता संग्रह:
लोक पीड़ (1944),
मैं जमा तू (1977),
लामियाँ वतन,
कस्तूरी,
सुनहुड़े (साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कविता संग्रह तथा कागज़ ते कैनवस ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त कविता संग्रह सहित 18 कविता संग्रह।
गद्य कृतियाँ
किरमिची लकीरें,
काला गुलाब,
अग दियाँ लकीराँ (1969),
इकी पत्तियाँ दा गुलाब, सफ़रनामा (1973),
औरतः इक दृष्टिकोण (1975),
इक उदास किताब (1976),
अपने-अपने चार वरे (1978),
केड़ी ज़िंदगी केड़ा साहित्य (1979),
कच्चे अखर (1979),
इक हथ मेहन्दी इक हथ छल्ला (1980),
मुहब्बतनामा (1980),
मेरे काल मुकट समकाली (1980),
शौक़ सुरेही (1981),
कड़ी धुप्प दा सफ़र (१९८२),
अज्ज दे काफ़िर (1982)
अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ
अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ (अमृता प्रीतम द्वारा लिखी गयी एक प्रसिद्ध कविता है जिसमे 1947 के भारत विभाजन के समय हुए पंजाब के भयंकर हत्याकांडों का बड़ा मार्मिक वर्णन है। यह कविता ऐतिहासिक मध्यकालीन पंजाबी कवि वारिस शाह को मुखातिब करते हुए लिखी गयी है। जिसमें वे वारिस शाह से कविता गुजारिश करती हैं कि वे अपनी क़ब्र से उठें और पंजाब के गहरे दुःख-दर्द को कभी न भूलने वाले अश्आर में ढाल दें और पन्ने पलटकर इतिहास का एक नया दौर शुरू करें क्योंकि मौजूदा का दर्द बर्दाश्त से बाहर है।ये कविता भारतीय पंजाब और पाकिस्तानी पंजाब दोनों में ही सराही गयी।1959 में फ़िल्म करतार सिंह में इनायत हुसैन भट्टी ने इसे गीत के रूप में पेश किया।
— अब्दुल हमीद इदरीसी