कविता

हिन्दी

माथे पर तेज़, पर आँखें उदास !
इक तेजस्वी वृद्धा को, देखा है आसपास !!

“कौन हो देवी?”, आशीष लेते मैं मुस्काई !
मायूस वो बोली, “पहचान तू भी ना पाई?”

सुन…
संस्कृत की पुत्री और माथे की बिंदी !
हूँ मातृभाषा मैं, मेरा नाम है हिंदी !!

रहती थी मैं जिन ह्रदयों में,
अंग्रेजी वहाँ अब बसती है !
देख के मेरी दयनीय हालत,
वो भी मुझ पर हसती है !!

हिंदी -दिवस पर फिर से तुम,
मेरी गाथा गाओगे !
भाषण दे कर अंग्रेजी में,
फिर मेरा मान घटाओगे !!

स्तब्ध थी मैं, झुक गया शीश !
किस हक से मांगू, मैं माँ का आशीष !!

— अंजु गुप्ता

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 24 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed