असमंजस
आज करूणा को वह समय याद आ रहा था जब विनय किसी भी धंधे में हाथ डालता था तो मिट्टी भी सोना हो जाती थी।घर में काली-सफेद दौलत का ढेर लग गया था।रोज रात को बहकते बोल और लड़खड़ाते कदमों के साथ रूपयों का ढेर उसके कदमों में लगता तो वह अपने आप को दुनिया की खुशनसीब लड़की समझने लगती।हालांकि माँ-बाबूजी ने समझाया भी लेकिन इतनी दौलत और सुख-सुविधा मिल रही थी कि पति के बहकते कदमों की ओर उसने ध्यान ही नहीं दिया।दो बच्चे भी हो गए।भरा-पूरा संयुक्त परिवार और मौज-मस्ती के दिन।
किन्तु कुछ ज्यादा ही बहकने का परिणाम अब सामने था। ।संयुक्त परिवार बिखर गया जो जितना समेट सकता था समेट लिया।विनय को डायबिटीज हो गई थी और डॉक्टरों ने खान पान पर पाबन्दियाँ लगा दी किन्तु विनय कहाँ मानने वाला था।डायबिटीज तो वैसे भी स्वयं बीमारी नहीं है लेकिन वह बीमारियों का किला जरूर है।हुआ भी वही कि एक एक कर सभी बीमारियों ने किले में प्रवेश कर लिया , धंधा चौपट हो गया,बीमारी की अवस्था में कंगाली आ गई थी।बच्चों ने अपनी पढ़ाई छोड़कर दुकानों पर काम करना शुरू कर दिया था ताकि विनय का इलाज हो सके और घर खर्च चल सके लेकिन विनय की दारू-गुटखा की लत ने उसे उस अवस्था में ला दिया कि डॉक्टरों ने भी हाथ ऊँचे कर दिये क्योंकि उसके ठीक होने की उम्मीद खत्म हो गई और अस्पताल से छुट्टी दे दी गई ।आज वह दर्द के मारे बहुत कराह रहा था।किडनी-लीवर जवाब दे ही चुके थे।घर पर विनय दर्द से कराह रहा था और उसे कोई उपाय भी नहीं सुझ रहा था।करूणा इसी असमंजस में भगवान के सामने खड़ी थी कि वह उससे मांगे भी तो क्या मांगे! विनय के लिए दर्द से मुक्ति या उसकी कुछ और साँसें ।