लघुकथा

लघुकथा- सार्थक श्राद्ध

मोहनी के घर श्राद्ध पक्ष की तैयारियां चल रही थी। जेठ -जेठानी, देवर -देवरानी सभी अम्मा -बाबूजी की पसंद नापसन्द बता रहे थे।
जेठ जी कह रहे थे-“देखो, अम्मा को मिर्च के पकौड़े बहुत पसंद थे। यह जरूर बनवाना।”
देवर जी कह रहे थे-“हाँ भाभीजी, बाबूजी को मीठा बहुत पसंद था। खासकर मूंग दाल का हलुआ । तो हलुआ जरूर बनाना।”
यह सब सुनकर मोहिनी मन ही मन हँसने लगी। सोचने लगी। जीते जी किसी भी बहु -बेटे ने अम्मा-,बाबूजी की कभी सेवा नहीं की। न ही गांव जाकर किसी ने उनका मनपसन्द  खाना खिलाया। बेचारे अम्मा -बाबूजी सारी जिंदगी गांव में खेती बाड़ी सम्भालते रहे। मरने के बाद अब  ऐसी श्राद्ध का क्या फायदा?
      पितृ पक्ष के श्राद्ध वाले दिन उसने अपनी जिठानी -देवरानी को कुछ समझाया। फिर सबने मिलकर तरह-तरह के व्यंजन बनाये औऱ बड़े -बड़े डिब्बों में भरकर वे अपने गंतव्य स्थान की ओर चल पड़े।
कुछ देर में वे एक वृद्धाश्रम में पहुँचे। वहां उन्होंने उन सभी वृद्धों के चरण धोये। उनका चरण स्पर्श किया फिर उन्हें तरह -तरह का भोजन परोसा।
स्वादिष्ट भोजन खाकर सभी वृद्धों के चेहरे खिल उठे। उन वृद्धों ने उन लोगों को  ढेर सारा आशीर्वाद दिया।।
जिठानी मोहिनी से कह रही थीं-” तुम सच कहती थीं कि मरने के बाद  श्राद्ध का दिया भोजन मिलता है या नहीं कोई नहीं जानता परंतु आज बुजुर्गों  के चेहरे पर खुशी और सन्तुष्टि देखकर निश्चित ही हमारे पूर्वज और हमारे अम्मा -बाबूजी जरूर खुश हुए होंगे।”
यह सुनकर मोहिनी के चेहरे पर मुस्कान उभर आई।
— डॉ. शैल चन्द्रा

*डॉ. शैल चन्द्रा

सम्प्रति प्राचार्य, शासकीय उच्च माध्यमिक शाला, टांगापानी, तहसील-नगरी, छत्तीसगढ़ रावण भाठा, नगरी जिला- धमतरी छत्तीसगढ़ मो नम्बर-9977834645 email- [email protected]