स्त्री
चित्रित की जाती है सदियों से
कागज और कैनवास पर बारीकी से
सजाई जाती है घर की दहलीज पर
रंगोली और रोली के शृंगार से
बहन, बेटी, माँ, पत्नी,और प्रेयसी
सभी पवित्र और प्यारे नामों से
सिर्फ जगह नहीं मिलती दिलों में
जाने क्यों सहम जाती है मर्दों से
जाने क्यों रोती है उन्हीं के लिए
जिसने दुत्कार दिया सदियों से ।
औरत है न तो आदत है परित्याग की
यही तो सिखाया जाता है बचपन से ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़