गीतिका/ग़ज़ल

अब तो बारिश की बूँदों में, जलने के अनुभव होता है।

अब तो बारिश की बूँदों में, जलने का अनुभव होता है।
मैं भी सोचा करता हूँ जाने क्यूँ ये अब होता है।।

जिसने दिल को यार लगाया, उसने धोखा खाया है,
शायद सच्चे आशिक के संग ऐसा ही ये सब होता है।

माँगे मौत नही मिलती है इश्क तो ऐसा दरिया है,
सोचो गर जो समय मिले ऐसा भी ये कब होता है।

जिसको सब कुछ मान लिया हो वो ही ग़र जो छलता हो,
चाहत में कुछ कमी रही हो ऐसा ही ये तब होता है।

सौरभ दीक्षित मानस

नाम:- सौरभ दीक्षित पिता:-श्री धर्मपाल दीक्षित माता:-श्रीमती शशी दीक्षित पत्नि:-अंकिता दीक्षित शिक्षा:-बीटेक (सिविल), एमबीए, बीए (हिन्दी, अर्थशास्त्र) पेशा:-प्राइवेट संस्था में कार्यरत स्थान:-भवन सं. 106, जे ब्लाक, गुजैनी कानपुर नगर-208022 (9760253965) [email protected] जीवन का उद्देश्य:-साहित्य एवं समाज हित में कार्य। शौक:-संगीत सुनना, पढ़ना, खाना बनाना, लेखन एवं घूमना लेखन की भाषा:-बुन्देलखण्डी, हिन्दी एवं अंगे्रजी लेखन की विधाएँ:-मुक्तछंद, गीत, गजल, दोहा, लघुकथा, कहानी, संस्मरण, उपन्यास। संपादन:-“सप्तसमिधा“ (साझा काव्य संकलन) छपी हुई रचनाएँ:-विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कविताऐ, लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित। प्रेस में प्रकाशनार्थ एक उपन्यास:-घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम, “काव्यसुगन्ध” काव्य संग्रह,