गिफ्ट
वह पहली बार विदेश गई थी. अब जेठानी के लिए कुछ तो लाना ही था न! सो आकर उसने जेठानी को हाथ में 5 चॉकलेट पकड़ाते हुए कहा- ”भाभी, आपके लिए मलेशिया से गिफ्ट लाई हूं. आप ज्यादा चॉकलेट खाती नहीं हैं, इसलिए थोड़े-से ही लाई हूं.”
अनेक बार विदेश से देवरानी और उसके बच्चों के लिए थैले भर-भरकर बड़े प्रेम-स्नेह से उपहार लाती हुई भोली-सी भाभी ने 5 चॉकलेट लेकर एक किनारे रख दिए और उसके चाय-पानी के इंतजाम में लग गई. उसके जाने के बाद भाभी ने देखा उन 5 चॉकलेट्स की एक्सपायरी डेट खत्म हुए भी 4 साल हो चुके थे. भाभी ने तुरंत उस गिफ्ट को डस्टबिन के हवाले कर दिया.
”कुछ लोगों की यही फितरत होती है, वे गुणा-भाग, घटा-जोड़ में ही लगे रहते हैं. इसके अलावा किस चीज को कैसे-कहां ठिकाने लगाना है, उन्हें खूब आता है.” भाभी ने सोचा.
लाने वाले की मनःवृत्ति का आइना होती है गिफ्ट, महज बुद्धिजीवी देवरानी ने शायद यह नहीं सोचा होगा.
बुद्धिजीवी होना ठीक है, ध्यान दें इस लघुकथा में हमने “महज बुद्दिजीवी” विशेषण का प्रयोग किया है. महज बुद्दिजीवियों का गिफ्ट देना महज एक औपचारिकता ही होता है. इससे तो अच्छा है लेन-देन की औपचारिकता को समाप्त कर प्रेम-प्यार, सेवा-सहायता को ही गिफ्ट समझा जाए.