लघुकथा

गिफ्ट

वह पहली बार विदेश गई थी. अब जेठानी के लिए कुछ तो लाना ही था न! सो आकर उसने जेठानी को हाथ में 5 चॉकलेट पकड़ाते हुए कहा- ”भाभी, आपके लिए मलेशिया से गिफ्ट लाई हूं. आप ज्यादा चॉकलेट खाती नहीं हैं, इसलिए थोड़े-से ही लाई हूं.”

अनेक बार विदेश से देवरानी और उसके बच्चों के लिए थैले भर-भरकर बड़े प्रेम-स्नेह से उपहार लाती हुई भोली-सी भाभी ने 5 चॉकलेट लेकर एक किनारे रख दिए और उसके चाय-पानी के इंतजाम में लग गई. उसके जाने के बाद भाभी ने देखा उन 5 चॉकलेट्स की एक्सपायरी डेट खत्म हुए भी 4 साल हो चुके थे. भाभी ने तुरंत उस गिफ्ट को डस्टबिन के हवाले कर दिया.

”कुछ लोगों की यही फितरत होती है, वे गुणा-भाग, घटा-जोड़ में ही लगे रहते हैं. इसके अलावा किस चीज को कैसे-कहां ठिकाने लगाना है, उन्हें खूब आता है.” भाभी ने सोचा.

लाने वाले की मनःवृत्ति का आइना होती है गिफ्ट, महज बुद्धिजीवी देवरानी ने शायद यह नहीं सोचा होगा.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “गिफ्ट

  • लीला तिवानी

    बुद्धिजीवी होना ठीक है, ध्यान दें इस लघुकथा में हमने “महज बुद्दिजीवी” विशेषण का प्रयोग किया है. महज बुद्दिजीवियों का गिफ्ट देना महज एक औपचारिकता ही होता है. इससे तो अच्छा है लेन-देन की औपचारिकता को समाप्त कर प्रेम-प्यार, सेवा-सहायता को ही गिफ्ट समझा जाए.

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