गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

फूल सा खिलने लगा हूँ आजकल,
फक्र  से   उड़ने लगा हूँ आजकल।

खूँ – पसीने  से  कमाई  जब किया,
काम  पर  मरने लगा हूँ आजकल।

जब  निवाले  को मिलाया भूख से,
फूलने – फलने  लगा  हूँ आजकल।

बेसहारों   को    उठाया    प्यार  से,
प्यार  को  पढ़ने लगा हूँ आजकल।

जब अहं को त्यागकर उनसे मिला,
बर्फ – सा गलने लगा हूँ आजकल।

अब  न  अपना  या  पराया है यहाँ,
तोड़  हद  बढ़ने लगा हूँ आजकल।

जब   अँधेरा   देखता   हूँ  मैं  कहीं,
खुद ब खुद जलने लगा हूँ आजकल।

लोग  अपनाएँ   मुझे  या  छोड़  दें,
बेफिकर  रहने  लगा  हूँ आजकल।

राह  अपनी  खुद  बनाकर मैं चला,
शायरी  कहने   लगा  हूँ  आजकल।

भीड़  या  तनहाइयाँ  हैं  एक – सी,
खुद से खुद मिलने लगा हूँ आजकल।

मैं  तुझे  कैसे   बताऊँ   क्या  हुआ,
आग  पर चलने लगा हूँ आजकल।

आँधियों  को  मात  दे  रौशन हुआ,
रात  को  खलने लगा हूँ आजकल।

तोड़   माया   की  दिवारें  शून्य  में,
राम  को  भजने लगा हूँ आजकल।

जंग  में  पाया  नहीं, खोया   बहुत,
हाथ  को  मलने लगा हूँ आजकल।

छोड़ नफरत को अदावत को अवध,
आदमी  बनने  लगा  हूँ  आजकल।

डॉ अवधेश कुमार अवध

*डॉ. अवधेश कुमार अवध

नाम- डॉ अवधेश कुमार ‘अवध’ पिता- स्व0 शिव कुमार सिंह जन्मतिथि- 15/01/1974 पता- ग्राम व पोस्ट : मैढ़ी जिला- चन्दौली (उ. प्र.) सम्पर्क नं. 919862744237 [email protected] शिक्षा- स्नातकोत्तर: हिन्दी, अर्थशास्त्र बी. टेक. सिविल इंजीनियरिंग, बी. एड. डिप्लोमा: पत्रकारिता, इलेक्ट्रीकल इंजीनियरिंग व्यवसाय- इंजीनियरिंग (मेघालय) प्रभारी- नारासणी साहित्य अकादमी, मेघालय सदस्य-पूर्वोत्तर हिन्दी साहित्य अकादमी प्रकाशन विवरण- विविध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन नियमित काव्य स्तम्भ- मासिक पत्र ‘निष्ठा’ अभिरुचि- साहित्य पाठ व सृजन