कविता

कविता

दांत छोटे जिह्वा बातून
रिश्ते हो गये जैसे नाखून
खुश होते है अंतरात्मा तक
खरोंच कर कुचलकर
कोई जा नहीं पाता इनसे
कभी कहीं भी बचकर
इनकी नजर में सब एक है
चाहे कोई नवाब हो या
वो हो कोई भी खातून
रिश्ते हो गये हैं जैसे नाखून
भावनाये होने लगी हैं चोटिल
शब्द होने लगे हैं बोझिल
हर ओर बस कुहासा है
दिलों में दर्द बेतहाशा है
चुप रह जाऊं तो गूंगी हूँ
बोलूँ तो हो जाती हूँ बातून
रिश्ते हो गये है जैसे नाखून
दिल घायल भी होता है
खून भी दिल का बहता है
दर्द भी सहना पड़ता है
शब्द शब्द शूल सा गड़ता है
अपनों के हाथों अपने
तोड़े और मरोडे जाते है
वफादार ही बेवफा कहके
इस जमाने में छोड़े जाते है
अपने ही अब पी रहे है
लग के गले अपनों का खून
रिश्ते हो गये हैं जैसे नाखून
बातें दिलों की समझता नहीं
बात पे अपनी ठहरता नहीं
रिश्तों को चढा़ है आजमाइश
का कैसा ये बेढंगा जुनून
रिश्ते हो गये हैं जैसे नाखून

— आरती त्रिपाठी

आरती त्रिपाठी

जिला सीधी मध्यप्रदेश