कविता

दिल और जज्बात

दिल और जज्बात दोनों के दावे खोखले निकले
अफसोस कि दोनों ही झूठे निकले।
दिल ने ठाना था कि न धड़केगा,
अब किसी और की खातिर।
जज्बात ने भी हामी भरी थी सिर झुका कर।
गुजरते वक्त के साथ कमजोर पड़ गए इरादे उनके
दोनों ही भूल गए वादे अपने।
बरसों बाद आखिर दिल धड़क गया फिर से
जज्बात भी काबू न रह सके दिल के।
अब यह आलम है कि दोनों गुम हैं,
इक साथ इश्क के गलियारे में।
जागती आंखों से देख रहे हैं हसीन सपनों को।
इश्क में अक्सर ये हालात हुआ करते हैं,
दिल और जज्बात दोनों मायूस हुआ करते हैं।
काश ये हो कि मायूस न वो होने पाएं,
कम से कम इस बार तो वो मंजिल पाएं।

— कल्पना सिंह

*कल्पना सिंह

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