कविता

जीवन की शर्तों पर

जीवन  की
शर्तों पर संगी
हम रोबोट हुए

हाँक रहा सूरज
निज पथ पर
उठ भिनसारे से ।
घर में अपना
मनुज टाँगकर
भगे सकारे से ।।

उम्र बढ़ी तो
स्वप्न सिद्ध सब
नकली नोट हुए ।
जीवन की
शर्तों पर संगी…..।।

फँदी जिन्दगी
एक धुरी के
घूम रही चक्कर ।
स्वाभिमान की
रोज सुलह तो
रोज नयी टक्कर ।।

आत्मग्लानि से
लदे चेहरे
छुपती ओट हुए ।
जीवन की
शर्तों पर संगी…..।।

एक-एक पल
नियत गैर हित
अपने लिए निरंक ।
हरदम विंधे हुए
सपनों को
फिरे लगाये अंक ।।

किसे गिनाएँ
लाल पीठ पर
कितने सोंट हुए ।
जीवन की
शर्तों पर संगी…..।।

फुर्सत कहाँ
सोचते किस पथ
चंदन, किस पथ पंक ।
कुंद पड़े
चिन्तन के आगे
क्या राजा क्या रंक ।।

एक ख़ुशी के
खातिर सारे
सिक्के खोट हुए ।
जीवन की
शर्तों पर संगी…..।।

— राजकुमार महोबिया

राजकुमार महोबिया

उमरिया,म.प्र. M- 7974851844