गीत/नवगीत

अभिनंदन

मस्तक पर खुशियों का चंदन
करें कर्म औ’ श्रम का वंदन
आशाओं को करें बलवती,
कुंठाओं का रोकें क्रंदन
आगत का नित है अभिनंदन ।

कटुताओं को याद करें ना
आंसू बनकर और झरें ना
मायूसी का घड़ा रखा जो,
उसको हम अब और भरें ना
करें वक्त का हम अभिवंदन
आगत का नित है अभिनंदन ।

बीता कल तो बीत गया अब
भरा हुआ घट  रीत गया अब
जिसने विश्वासों को साधा,
ऐसा पल तो जीत गया अब
नवल सूर्य फिर से नव साधन
आगत का नित है अभिनंदन ।

गहन तिमिर तो हारेगा अब
दुख,सारा गम भागेगा अब
नवल जोश उल्लास सजेगा
नवल पराक्रम जागेगा अब
हर नव पल को है अभिवादन
आगत का नित है अभिनंदन ।

     — प्रो. शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]