कविता

करवा चौथ (कर्क चतुर्थी)

कार्तिक बदी चतुर्थी करवा क पर्व आया।
अर्धांगिनी ने मेरी पानी पिया न खाया।
पति की सलामती को करती कठिन तपस्या,
नारी महान है ये बेदो ने भी बताया।

चपला हो चंचला हो शादी के बाद नारी।
शादी के बाद सादी हो जाती है कुआंरी।
पुरुषों की क्या बताये होती अजब कहानी।
पत्नी के साथ खोये बातें लिए पुरानी।

पत्नी में खोजते है वह जीन्स वाली प्रीती।
कैसा दिमाग शातिर यह आदमी की रीती।
पत्नी बहन हैं माता परिवार की सृजेता।
हम जीत करके हारे वह हर कदम विजेता।

पश्चिम की सभ्यता को घर मे नही बसाना।
पूरी न मिल सके तो आधे ही पेट खाना।
पत्नी सुलक्षणा हो काली कुटिल कुरूपा।
एकल पतिव्रता पर बलिहार लाख रुपा।।

आशुकवि नीरज अवस्थी

आशुकवि नीरज अवस्थी

आशुकवि नीरज अवस्थी प्रधान सम्पादक काव्य रंगोली हिंदी साहित्यिक पत्रिका खमरिया पण्डित लखीमपुर खीरी उ0प्र0 पिन कोड--262722 मो0~9919256950