ग़ज़ल – लगाए बहुत साल याँ आते आते
लगाए बहुत साल याँ आते आते,
रुला ही दिया क़द्र-दाँ आते आते।
बहुत थक गए हम रह-ए-ज़िन्दगी में,
थकीं पर न दुश्वारियाँ आते आते।
घुटी साँस ज्यूँ ही गली आई उनकी,
न मर जाएँ उनका मकाँ आते आते।
करें याद गर वो ज़रा भी नहीं ग़म,
निकल जाए दम हिचकियाँ आते आते।
बड़ी गर्मजोशी से दावत सजी थी,
हुआ ठंडा सब मेज़बाँ आते आते।
बताऐँ तुझे क्या ए ख्वाबों की मंज़िल,
कहाँ पहुँचे थे हम यहाँ आते आते।
‘नमन’ क्या बचा जो करें फ़िक्र उसकी,
लुटा कारवाँ पासबाँ आते आते।
(पासबाँ – रक्षक, चौकीदार)
— बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया