गीत/नवगीत

योगी जी! जाग जाईये

ओ भगवाधारी सिंह पुत्र, है कहाँ तुम्हारी हुंकारें,
हिंदुत्व तुम्हारा कहाँ गया, हैं कहाँ तुम्हारी तलवारें,

तुमको गद्दी पर बिठा दिया यह सोच कि कुछ बदलाव मिले,
अफसोस तुम्हारे रहते भी, हमको घावों पर घाव मिले,

जेहादी मंसूबो से हम लड़ते लड़ते झल्लाये थे,
यू पी का हिन्दू बचा रहे, योगी योगी चिल्लाए थे,

तुम रहो हितैषी हिन्दू के, यह सपने हमने पाले थे,
बस यही सोचकर सत्ता से आज़म अखिलेश निकाले थे,

पर हाल तुम्हारे शासन का पहले से ज्यादा तंग मिला,
हमला शिव की बारातों पर,गणपति पर भी हुड़दंग मिला,

सबका विश्वास कमाने के चक्कर मे नैना बंद मिले,
शहरों में पुण्य तिरंगे की यात्राओं पर प्रतिबंध मिले,

जिनका विश्वास कमाना था,उन सबने यह उपहार दिया,
छाती पर चढ़कर योगी की,कमलेश तिवारी मार दिया,

यह सिर्फ नही है इक हत्या,यह कालिख है सरकारों पर,
ढोंगी हिन्दू पाखंडों पर, प्रभु श्री राम के नारों पर,

यह कालिख है गौ माता के उन झूठे सेवादारों पर,
यह कालिख है हिन्दू समाज के कायर ठेकेदारों पर,

ये हत्या एक संदेशा है, हिन्दू अस्तित्व उजाड़ेंगे,
योगी मोदी क्या कर लेंगे, यूँ ही चुन चुन कर मारेंगे,

गर्दन रेती गोली मारी, यह दृश्य देखकर डरे नही?
हिन्दू हिन्दू रटने वाले क्या आज शर्म से मरे नही?

यूँ ही कन्या पूजन या गौ सेवा का स्वांग रचा लोगे?
शहरों के नाम बदलने से हिन्दू की जान बचा लोगे?

योगी जी दो बरसों में ही रक्षा के बंधन छूट गए,
अब क्या गौरव चौहान कहे, विश्वास सभी के टूट गए,

तुम ही बेसुध हो जाओगे, हम किससे आस लगाएंगे,
जेहादी गुंडों से हमको, आज़म अखिलेश बचाएंगे?

गर नही संभलता है शासन तो गोरखपुर में ध्यान करो,
या फिर यू पी के जख्मों का योगी जी तुरत निदान करो,

सबका विश्वास कमाने में, अपनो की मत कुर्बानी दो,
बाहर की नागफनी छोड़ो, घर की तुलसी को पानी दो,

हम धर्म सनातन के प्रहरी आवाज़ लगाते आएंगे,
हर बार पड़े मरना चाहे, हम जान गंवाते जाएंगे,

कातिलों!सुनो!हम डरे नही, हम परशुराम अवतारी हैं,
इक हिन्दू के अंदर सौ-सौ, ज़िंदा कमलेश तिवारी हैं।

— कवि गौरव चौहान