आज की दुनिया को रोशनी से जगमगाने में अभूतपूर्व योगदान देने वाले वैज्ञानिक
आज दीपावली और दशहरा जैसे त्योहारों के अवसर पर इस दुनिया को अपने अथक प्रयत्नों से विद्युत रोशनी से जगमगा देने वाले वैज्ञानिकों को याद करने का भी हमारा अभीष्ट कर्तव्य बनता है। आज दीपावली, दशहरा, वैशाखी, क्रिसमस और अनेकों त्योहार बिजली की लड़ियों और विभिन्न तरह-तरह के आकर्षक रंगबिरंगे प्रकाश उत्पादित करने वाले विद्युत उपकरणों की मदद से अद्भुत और आश्चर्यजनक रूप से आकर्षक बना दिए गये त्योहार बगैर विद्युत, बगैर बल्ब और अब बगैर एलईडी लाईट के हम उनको मनाने की कल्पना भी नहीं कर सकते !
विद्युत का आविष्कार एक ब्रिटिश वैज्ञानिक माइकल फैराडे ने 1831 में किया, वे एक अत्यन्त निर्धन परिवार में जन्मे थे, जो अपनी रोजी-रोटी के लिए जिल्दसाजी का काम करते थे, तभी उन्हें उस समय के तत्कालीन प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर हम्फ्री डेवी के साथ उनकी प्रयोगशाला में काम करने का मौका मिल गया। इस होनहार और अति प्रतिभावान वैज्ञानिक को एक रास्ता मिलने की देर थी। माइकल फैराडे ने विद्युतचुम्बकीय के क्षेत्र में इतना काम किया है कि आज वैज्ञानिकों को भी विश्वास नहीं होता कि ‘कोई मनुष्य अपने एक जीवन में इतनी चीजों का आविष्कार कर सकता है ! ‘
थामस अल्वा एडिसन भी एक बहुत ही साधारण परिवार में जन्मे थे, परन्तु अपनी विलक्षण मेधाशक्ति से उन्होंने इतने आविष्कार किए कि उनकी बराबरी आजतक कोई वैज्ञानिक नहीं कर पाया है। उन्होंने 1093 आविष्कारों पर अपने नाम का पेटेंट कराने वाले अब तक के महान वैज्ञानिकों में हैं। उन्होंने ही 1879 में सर्वप्रथम विद्युत बल्ब का आविष्कार किया। उनकी धैर्यशीलता के बारे में एक कहानी बहुत मशहूर है कि वे 99 बार प्रयास करने के बाद 100 वीं बार अपने लगातार प्रयासों के बाद बल्ब बनाने में सफल हुए, कल्पना करें, आम इंसान अपने दो-तीन प्रयासों के बाद ही अपने प्रयास से निराश होकर अगले प्रयासों से अपना मुँह मोड़ लेता है।
इस दुनिया को रोशनी से जगमगाने में एक मंजिल की और जरूरत थी, क्योंकि अमेरिकी वैज्ञानिक थामस अल्वा एडिसन द्वारा आविष्कृत बल्ब बिजली की खपत बहुत करते थे और इनकी उम्र भी बहुत कम थी। सन् 1962 में इस समस्या का समाधान एक 33 वर्षीय युवा अमेरिकी वैज्ञानिक निक होलोनिक ने एलईडी बल्ब (लाइट-एमिटिंग डायोड) का अचानक आविष्कार करके इस मंजिल के लक्ष्य को भी पूरा कर दिया। एक डायोड में एक मिश्र धातु का प्रयोग होता है, जिसमें एक भाग गेलियम, चार भाग फास्फोरस और छः भाग आर्सेनिक होता है, ज्योहीं इसमें विद्युत प्रवाहित होती है, यह तेज रोशनी उत्सर्जित करने लगता है। वस्तुतः वे प्रयोग किसी अन्य लक्ष्य के लिए कर रहे थे, अकस्मात इस एलईडी बल्ब का आविष्कार हो गया, इसकी स्वीकारोक्ति खुद उन्होंने इन विनीत शब्दों में किया है कि, ‘मैं तो ‘कुछ ‘और बना रहा था, ये तो बस यूँ ही बन गई। ‘
एलईडी बल्ब साधारण बल्बों की तुलना में 75 प्रतिशत तक बिजली की बचत करते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार साधारण बल्ब 1000 घंटे तक जलकर अक्सर फ्यूज हो जाते हैं, जबकि एक एलईडी बल्ब की आयु लाखों घंटे तक भी हो सकती है। इसके अतिरिक्त ये आकार में बहुत छोटे, हल्के और बहुतेरे धातुओं व प्लास्टिक पर आसानी से लगाए जा सकते हैं। इन्हीं गुणों से इनका उपयोग बहुत दिनों से ट्रांजिस्टर में होता रहा है, अब तो इनका प्रयोग इलेक्ट्रॉनिक्स के हर सामानों यथा डिजिटल घड़ियों, कम्प्यूटरों, मोबाईल फोन्स आदि के अलावे अब तो घरों की रोशनी के साथ आधुनिक शहरों की सड़कों पर स्ट्रीट लाईटों में धड़ल्ले से इनका प्रयोग हो रहा है।
आज प्रकाश के क्षेत्र के अलावे इस दुनिया के प्रगति में लगभग सभी क्षेत्रों में विद्युत का उपयोग हो रहा है। इन तीन महान वैज्ञानिकों के इन आविष्कारों से आज दुनिया हर क्षेत्र में कितनी आगे है इसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता ! विद्युत और प्रकाश मानवमात्र के लिए एक दैवीय वरदान से कम नहीं है, इनके बिना मानव के आधुनिक जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती !
— निर्मल कुमार शर्मा