ग़ज़ल
दर्द के तन्हाईयों के उलझनों के दौर में
कौन किसका साथ देता है ग़मों के दौर में
है यही बेहतर जबां खामोश रक्खे आदमी
बोलना अपराध सा है बंदिशों के दौर में
टूट जाएगा किसी दिन किरचियों में देखना
आईना बन जी रहा है पत्थरों के दौर में
मै उसे पागल कहूँ या हिम्मतों की दाद दूँ
दीप रोशन कर रहा जो आँधियों के दौर में
हो सके जितनी करो नेकी दुआ अर्जित करो
बस यही हमराह होंगे मुश्किलों के दौर में
हैं ज़रूरत के मुताबिक अब सभी रिश्ते फक़त
दिल से दिल जुड़ते नही ख़ुदगर्ज़ियों के दौर में
कुछ घड़ी बस प्यार से हँस बोल ले ये ही बहुत
चाहतों की बात मत कर नफ़रतों के दौर में
— सतीश बंसल