१)
चाय बेचकर बन गया, भक्तजनों पी एम ।
पीने वाले बन गये, जनपद के डी एम।।
जनपद के डी एम, लगाते घर का पहरा।
थाम केतली हाथ, बँधा है सर पर सहरा।।
देख अनौखा काम, ‘चाँद’ सही राय बताय।
सभी छोड़कर जॉब, बेचिये भक्तजन चाय।।
२)
चुस्की लेकर चाय की, महबूबा हर्षाय।
बोली तेरी चाय ने, दिल को लिया चुराय।।
दिल को लिया चुराय, हो गयी तेरी दासी।
रोज पियूँगी चाय, बताऊँ तुमको साँची।।
मन में खुशी अपार, ‘चाँद’ ड्यूटी है रिस्की।
रहो हमारे पास, लगाय चाय की चुस्की।।
३)
भूत इश्क का हो गया, जबसे मियाँ सवार।
इक बाला से हो गया, बिन बोले ही प्यार।।
बिन बोले ही प्यार, करें पीछा रोजाना।
तुम हो मेरी जान, मैं हूँ तेरा दिवाना।
‘चाँद’ रहा बतलाय, काम था बड़ा रिश्क का।
पिट चौराहे बीच, उतरा भूत इश्क का।।
— चन्द्रभान सिंह ‘चाँद’