मुझे भी अब कली कोई बड़ा मदहोश करती है।
कभी जिस राह से गुजरूँ उसी से वो गुजरती है।।
इरादा है यही मेरा करूँगा दूरियाँ उससे।
खबर मिलती जमाने से कि हर-पल वो तड़पती है।।
बड़ा ही पाक दिल मेरा सदा खामोश रहता ये।
मगर वो इश्क की अंधी नहीं कुछ भी समझती है।।
उसे कैसे बताऊँ मैं मुहब्बत कर नहीं सकता।
दिवानी हो गयी हूँ मैं सदा हर-बार कहती है।।
किसी मैं एक की खातिर चमन कैसे उजाडूंगा।
चमन में लाख हैं कलियाँ मगर इक-इक उजड़ती है।।
बने रंगीन मौसम जब सदा खुद को संभालो तुम।
बड़ी दुनिया फरेबी है कि पल-पल ये बदलती है।।
दिवाने हो गए लाखों बड़ी है ‘चाँद’ मजबूरी।
करी नफरत नहीं मैंने तभी दुनिया महकती है।।
— चंद्रभान सिंह “चाँद”