आखिर
सूखे हुए तने से जब निकलती है
कोंपलें
मौसम के मिजाज से बढ़ती है
निकलते हैं ,हरे-हरे पत्ते फैल जाते हैं
आसमान की ओर
अपनी आवाजें बुलंद करते हैं
हवा के साथ
इतराते हैं ,इठलाते हैं
जमीन को देखकर आवाज करते हैं
ताकि अपनी मौजूदगी का एहसास करवा सकें
पतझड़ आते ही पत्ते पीले पड़ जाते हैं
हवा जो कल तक साथ ही
उनकी आवाज में
उनको तोड़कर जमीन पर डाल देती है
धराशाई पड़े रहते हैं ,जमीन पर
मिट्टी के हो जाते हैं
आखिर!