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ऐसा नहीं कि इन को दर्द नही होता

लड़के रोते नही तो क्या उन को दर्द नही होता।

होता तो बहुत है पर वो उस को जाहिर नही करते।

सिर्फ बेटियां विदा ही नही होती घर से।

बेटे भी अकेले विदा हो जाते है घर से।

बस उन की विदाई में बारात नही होती।

उन की विदाई का अहसास दुनियां को नही होता।

बेटे भी पढ़ने को और घर चलाने को

चुप चाप विदा हो जाते है घर से।

बस उन की विदाई में वो कोहराम नही होता।

अकेले रहते है दूर अपनो से और उफ्फ नही करते।

लड़के रोते नही तो ये नही कि उन को दर्द नही होता।

दर्द तो होता है उन्हें पर वो छुपा लेते है।

आँखे पोछकर अपनी सब को हँसा लेते है।

ये बेटे है, जिन के कंधों पर घर का बोझ होता है।

फिर भी ये सब से रिश्ता निभा लेते है।

पूछो गर हाल इन का तो बस मुस्कुरा देते है।

होस्टल में जब नही मिलता खाना घर का

तो रूखी रोटी ही चाय से खा लेते है।

वो नखरे नही करते रहने और खाने में।

माँ से नही करते शिकायत घर से दूर जाने में।

जब आती मुसीबत कोई घर पर,

माँ के लिए ये चट्टान बन जाते है।

राह तकते नही किसी की खुद अपनी ।

हिम्मत से हर मुश्किल को भगा देते है।

ये लड़के है जो घर गम में मुस्कुरा देते है।।

रोते नही ये गम दिखाने को ,दर्द सह जाते है।।

संध्या चतुर्वेदी

अहमदाबाद, गुजरात

संध्या चतुर्वेदी

काव्य संध्या मथुरा (उ.प्र.) ईमेल [email protected]